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कि कब कामयाब होंगी कोशिसें मनाने की कि कब बिखरी खामोशी लब्ज ढूंढेगी पढ़े - डाका पड़ा था कल रात घर मेरे . . . कि कब मधुर वाणी तुम्हारी लहर बन कर मेरे कानों मे समाएगी
हां, जरूर, अब जल्द ही, मन की बर्फ पिघलेगी खुशी दरिया बन कर आएगी। पढ़े - जुल्म क्यों सहती हो तुम . . . बस कुछ क्षणों का इंतजार सही ऐसी भी क्या नाराजगी
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