एक ओर ये तुम्हारी नाराजगी
एक छोर पर मेरा इंतजार

कि कब कामयाब होंगी कोशिसें मनाने की
कि कब बिखरी खामोशी लब्ज ढूंढेगी
पढ़े - डाका पड़ा था कल रात घर मेरे . . .
कि कब मधुर वाणी तुम्हारी
लहर बन कर मेरे कानों मे समाएगी

हां, जरूर, अब जल्द ही, मन की बर्फ पिघलेगी
खुशी दरिया बन कर आएगी।
पढ़े - जुल्म क्यों सहती हो तुम . . .
बस कुछ क्षणों का इंतजार सही
ऐसी भी क्या नाराजगी

Shubham Poddar

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