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अपनी मंज़िल, अपना रास्ता है हम शोखियां बखारते, शौक से चलते हैं हम वो हैं जो मोड़ पर न रास्ते बदलते हैं पतझड़ से सीखा है, हम पत्तो की तरह झड़ते हैं
गिरते हैं भले टूटकर पर शाख न बदलते हैं झीलों की तरह झलते हैं, अपनी धुन में मस्त मगन बहते है हमारी मंज़िल है लापता, तालाश में भटकते है
एक प्यासी नदी सी, समुन्द्र से जा मिलते हैं धूप में निबाह जाते, छांव में पांव जलते हैं अजीब से हैं, अजीब हमारी हरकते हैं न कोई गम है न किसी शिकन की आहटे हैं
आहत हैं हम खुद से ही पर पीछे मुड़कर न कभी देखते हैं हार गए तो क्या, हार को भी हराने की कूवत रखते हैं जीतते होंगे लोग दुनिया, हम तो दिल जीतने चले हैं
न खौफ है किसी का, न किसी पर मरते हैं 'खुदा के बंदे हैं हम, सिर्फ खुदा से ही डरते है'
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