जल रही बिखर  रही
टुकड़ों का हिसाब नहीं
कोई पास नही मेरे
और कोई आस नहीं

पढ़े - फिर तरुवर तुम्हें क्यों अहंकार . . .

रिस्ते नाते सब बेईमानी
संसार सारा तमाशाई
हाय दुहाई दुनियां की
फिर भी न कोई आस पाई

पढ़े - जो आप इक बार घर आ जाते . . .

जो संग हसते गाते थे
आज नजारा ले रहे हैं
यहां सीने में आग लगी है
वहां वो घी डाल रहे हैं

पढ़े - नासमझी . . .

छिटें, तानाकसी, अपमान
आज दब गई इनके बोझ तले
अब कौन मेरे टुकड़े समेटे
कौन मेरा सहारा बने


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk