सागर को अपने सामने देखकर गंगा प्रसन्न हो गयी ।
सागर ने मुस्कुराते हुए पूछा "गंगा कैसी हो? और पढ़ाई क्यों छोड़ दिया?"
गंगा -"सागर इन बातों को छोड़ो बताओ कैसे आना हुआ?"
सागर -"नहीं गंगा तू अगर मेरी दोस्त हो तो बताओ तुझे मेरी कसम" सागर ने जिद करते हुए कहा ।
गंगा -"सागर मैं कैसे कहूं कि ये जो कुछ भी हुआ है हमारी दोस्ती की वजह से, हमारी दोस्ती की खबर भाभी तक पहुंची तो उन्होंने भैया को गलत सलत कह डाला, यही कि हमारे बीच कुछ गलत है, तभी भैया ने हमारी पढाई छुड़ा दिया"
गंगा ने ऊँगली से दुपट्टे का कोना मुँह में दबाकर कहा ।
ये सुनकर सागर को भाभी पर बड़ा गुस्सा आया और खुद पर अफसोस भी हुआ कि मेरी वजह से गंगा की पढाई छूट गयी ।
"गंगा तुम चिंता मत करो मैं जो भी पढूंगा तुम्हारे लिए भी अलग से नोट्स बनाकर रखूंगा और तुम्हें दूंगा तुम भी अपनी पढाई करना और कभी-कभार इसी जगह पर आकर समझा भी दूंगा" सागर ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा ।
"लेकिन सागर किसी ने हमें देख लिया तो" गंगा डर रही थी
"नहीं गंगा कोई नहीं देखेगा तुम बकरी चराने रोज आती हो ना शाम को दो घंटे के लिए उसी बीच पेड़ के पीछे वाली गुफा में पढा दूंगा" सागर ने कहा ।
ये सुनकर गंगा खुश हो गई कि अब उसकी पढाई भी पूरी होगी और सागर को भी देख लिया करेगी ।
इसी तरह सागर कभी-कभी गुफा में आकर पढाने लगा था गंगा को । गंगा को देखे बिना सागर को भी चैन नहीं मिलता था । उसके दिल में भी गंगा के लिए प्रेम उत्पन्न हो गया ।


जब भी सागर गंगा को कोई टॉपिक समझाता गंगा एकटक सागर को निहारती और फिर सागर के तकने पर सर झुका लेती ।
दोनों के ही हृदय में अगाध प्रेम था लेकिन दोनों को डर था प्रेम के प्रदर्शन से कहीं हमारे रिश्ते को स्वार्थ नहीं समझ बैठे । इसलिए दोनों अपनी भावनाएं एक दूसरे से छिपा रहे थे ।
इसी तरह डेढ साल बीत गए । लाजो ने एक बेटे को जन्म दिया था । लाजो को अब चैन था कि गंगा की  पढ़ाई  छूटी और राघव भी गंगा से उतना प्रेम अब नहीं करता था । केवल अपने बेटे में उलझा रहता ।
लाजो इतनी चालाक थी कि गंगा को कभी भी भाई की नजरों में उठने ही नहीं देती ।
बराबर शिकायत करते रहती । जबकि गंगा इन बातों से अंजान नहीं थी! सब समझती थी लेकिन फिर भी चुप थी । वह अपना कर्तव्य निभा रही थी ।
सागर के अपनेपन और प्यार ने उसकी ज़िंदगी को हसीन बना दिया था । भले ही दोनों के बीच कसमें वादे नहीं हुए थे प्रेम का इजहार नहीं हुआ था ।
लेकिन अंदर से दोनों ही एक-दूसरे के प्रेम को समझने लगे थे । दसवीं की परीक्षा के बाद सागर शहर जाने वाला था पढ़ाई के लिए ये जानकारी जब सागर ने गंगा को सुनाई तो गंगा उदास हो गई ।
आँखों में आँसू लबालब भर आए । सागर से रहा नहीं गया उसने गंगा के आँसू पोंछ डाले और फिर गंगा फफक फफक कर रो पड़ी । सागर ने गंगा को अपने सीने से लगा लिया । सागर भी रो पड़ा ।
"गंगा मैं पढ लिखकर कुछ बन जाऊंगा तो फिर तुमसे ही शादी करूंगा तुम ही मेरी धर्म पत्नी बनोगी"
सागर ने गंगा को वचन देते हुए कहा ।
अब दोनों ही प्रेमी युगल घंटों बैठकर भविष्य की बात करते थे ।


एक दिन गंगा को आने में देर हो गई । जल्दी से गुफा में कदम रख रही थी कि गिर पड़ी । सागर पास ही खड़ा था लेकिन गंगा को उठाया नहीं ।
ये देखकर गंगा को सागर पर बड़ा क्रोध आया ।
"सागर तुम मुझे उठा नहीं सकते थे पैर में बहुत पीड़ा हो रही है"
"गंगा गुस्सा मत हो विवाह से पहले मैं तुम्हें स्पर्श करके अपने प्रेम को वासनामयी नहीं बना सकता"
सागर ने जवाब दिया ।
ये सुनकर गंगा तमतमाकर बोली "सागर मेरे हृदय में तुम हो और तुम्हारे स्पर्श से मैं गंदी नहीं बल्कि पवित्र हो जाऊंगी"
"गंगा मैं जानता हूं हम दोनों का प्रेम अगाध है लेकिन इस समाज और दुनिया को ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहता कि कोई कहे मेरी गंगा अपवित्र है"
सागर ने बड़े शांत स्वर में जवाब दिया ।
"सागर मुझे दुनिया की परवाह नहीं है हमें दुनिया से क्या मतलब जो हमारे प्रेम को समझ ही नहीं सकते"
गंगा ने फिर से प्रश्न कर दिया ।
"गंगा तुम एक नारी हो सबसे पहले और नारी की जान उसकी मर्यादा में बसी होती है भविष्य में लोगों के उलाहनों से तुम्हें बचाना चाहता हूँ, क्योंकि मुझे केवल गंगा से प्रेम नहीं है बल्कि उसके अस्तित्व से भी प्रेम है और उसकी अस्मत का मान कायम रखना भी मेरा कर्तव्य बनता है" सागर ने गंगा की आँखों में देखकर कहा ।
सागर की बातें सुनकर गंगा को महसूस हुआ कि सागर कितने उच्च विचार का है ।
"सागर मुझे अपने प्रेम पर गर्व है "


"गंगा जो पुरूष किसी नारी के मान का मान नहीं रख सकता वह प्रेम का अधिकारी नहीं होता है"
"गंगा तुम मेरी हो और मेरी ही रहोगी मुझपर भरोसा रखो" सागर ने गंगा का हाथ पकड़कर कहा।
"सागर मुझे विश्वास है तुमपर मैं तेरे शहर से लौटने का इन्तज़ार करूंगी" गंगा ने कहा
कल ही सागर शहर जाने वाला था इसलिए गंगा से मिलने आया था । सागर कभी भी इन दो सालों में गंगा को स्पर्श नहीं किया था, जिस दिन प्रेम का इजहार किया उस दिन सीने से लगाया और आज शहर जा रहा था तो हाथ स्पर्श करके वचन दिया बस ।
गंगा को दसवीं तक की पढ़ाई स्वयं सागर ने कराई ।
बिना स्कूल जाए । भले ही गंगा दसवीं पास नहीं कहलाए, मगर उसे सारी जानकारी सागर से मिल गयी थी । सागर के दिए नोट्स गंगा छिपाकर रखती थी भाभी से और रात को पढा करती थी ।
अब सागर के जाने से गंगा उदास हो गई थी ।
अभी भी बकरी चराने आती थी गंगा । और गुलाब के पौधे को छूकर सागर को महसूस करती थी ।
क्योंकि सागर ने गंगा के लिए ये पौधा लगाया था और कहा था मेरी याद आए तो इनसे बातें कर लेना ।
सागर भी गुलाब के कुछ फूल तोड़कर निशानी के तौर पर रख लिया था ।
गंगा की लिखावट के कुछ पन्ने रख लिया ताकि इसके सहारे शहर में रह सके ।
दोनों प्रेमी युगल विरह अग्नि में जल रहे थे ।
सागर को शहर गए छः साल बीत चुके थे । गंगा की आंखें इन्तज़ार करते-करते पथरा गयी थी ।
गंगा अब पूर्ण युवती हो गई थी । इसलिए राघव ने गंगा के लिए लड़के तलाशने शुरू कर दिया था ।


गंगा रोज पेड़ पौधे के पास बैठकर अपने दुखड़े सुनाया करती थी, जैसे कि वो पेड़ नहीं होकर स्वयं सागर का स्वरूप हो । गुलाब और लीची के पौधे को गंगा ने सूखने नहीं दिया क्योंकि सागर ने उसे प्रेम से गंगा के लिए लगाया था । गंगा को लीची बहुत पसंद थी । गंगा पेड़ से लीची तोड़कर खूब खाती । पेड़ तो अब बड़ा हो गया था ।
गंगा की भाभी का विचार अभी भी वैसा का वैसा ही था । गंगा से द्वेष भाव रखती थी । सोचती थी कि गंगा की शादी में दहेज देना पड़ेगा । इसलिए अपने भाई से कहा ऐसा रिश्ता ढूंढो जो लड़का ही पैसा दे और इसे ब्याह ले जाए । लाजो का भाई नंबर वन शराबी था ।
उसने एक ऐसा ही रिश्ता ढूंढ कर लाया ।
लड़के ने गंगा को पसंद कर लिया । वह कोई लड़के नहीं था बल्कि एक मर्द था जो कि गंगा से दस साल से भी उम्र में बड़ा था । देखने में बस ठीक-ठाक था ।
जब गंगा को अपना रिश्ता तय होने की खबर मिली तो, वह रोती हुई पेड़ के पास आई और लीची के पेड़ से टेक लगाकर दहाड़ें मारकर रोने लगी ।
कि तभी गंगा को बाँसुरी की बहुत प्यारी धुन सुनाई पड़ी । धुन इतनी मीठी थी कि गंगा रोना भूलकर उसको ढूँढने लगी जो ये बाँसुरी बजा रहा था ।
बेचैन होकर गंगा ने इधर-उधर झांका तो दूर खड़ा एक आदमी सूट बूट में खड़ा दिखाई पड़ा! जिसके हाथ में बाँसुरी थी । उस आदमी का पीठ गंगा की तरफ़ था चेहरा नहीं दिख रहा था । इसलिए गंगा दौड़कर देखने गयी आखिर इतनी प्यारी बाँसुरी कौन बजा रहा ।
ज्यों ही उसके निकट गंगा पहुंची त्यों वह आदमी पलटा । गंगा ने जब उसे देखा तो .......

शेष अगले अंक में

Radha Yshi

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk