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तेरी जिस्म के भूखे हम नही,
तेरी रूह से मोहब्ब्त हम करते है,
तेरी सौंदर्य का तो पता नही
पर तेरी अदाओं पे हम मरा करते हैं।
पढ़े - जुल्म क्यों सहती हो तुम . . .
वक्त-बेवक्त,
बस तुझे ही हम याद किया करते है,
हकीकत में न सही,

पर ख्वाबो  में हर रोज हम तुझ से मुलाकात किया करते हैं।
तेरी जुल्फो के कायल हम नही,
तेरी नज़रों से घायल हम नही,
फिर भी हम तेरे ही बारे में
पढ़े - मौत का नज़ारा हमे भी . . .
हर रोज लिखा करते हैं।
लब्जो का तो पता नही,
पर जज़्बात की स्याहीें से हर रोज तुझे शब्दों में कैद किया करते हैं।

Shubham Poddar

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