आँखे न पढ़ सके तुम मेरी,
हर पहलू इसमे लिखा था
तेरी हर बेवफाई का,
आसुंओं का कतरा इसमे छिपा था।
पढ़े - जुल्म क्यों सहती हो तुम . . .
सोची थी कि बेवफ़ाई हम से
तुम नही कर पाओगे,
इश्क के चौराहे पे
यूँ हमे नही नचाओगे।
कास ये बेशर्मी तेरी

मेरे सामने पहले ही उभर के आ जाती,
दिल तुझे देने से पहले
मैं तेरी धोखा-धरी को समझ पाती।
पर अब तुम हो या नही
फर्क नही परता,
पढ़े - मौत का नज़ारा हमे भी . . .
तेरे न होने की वजह से अब
मेरी हर पल हसीन है होती
अपनों के साथ बिताएं वक्त
मुझे हर रोज नई उत्साह है देती।

Shubham Poddar


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