दिल ये हमारा क्यों जलता है?
गर्म लौह की तरह क्यों पिघलता है?

दीप जल कर जीवन को रौशन करता है,
पर ये दिल जल कर क्यों हमे खुद में ही राख करता है?

पढ़े - दिल में उत्तर गयी है वो

क्यों नही दिल भी जल कर,
हमे दीपक की तरह रौशन करता।

पढ़े - देह मत देना 

क्यों इस दिल की वजह से हमे दर्द से गुजरना पड़ता है?
क्यों हमारे सीने में ये रहकर,

किसी और का हो कर रह जाता है?
क्यों ये औरो की वजह से,
हमसे ही गुस्ताखी करता है।

  Shubham Poddar

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk