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खाक में मिल गए जज्बात मेरे, तेरे दिए गम बन गए अँधेरी रात मेरे। गुनाह-ए-इश्क किया था, सजा तो मिलना ही था पढ़े - क्यों बेटी हुई तो मातम छाया नज़ारा बेखुदी का दिल पे छाना ही था। दिल से निकली आह को पलको से बहाना ही था पढ़े - माँ बहुत रोई थी मोहब्ब्त में मुझ से हुई धोखा-धरी को अपने दिल में तो दबाना ही था। दुनियाँ वालो को दिल पे परे जख्म को नही दिखाना था। होकर उससे रूबरू एक दिन, पढ़े - इजहार हो न पाया उसके गालो पे कस के तमाचा लगाना था, किए गए उसके झूठे वादे वो रस्मे वो कस्मे, पढ़े - तू नारी है कमजोर नही ये सभी उसे याद दिलाना था पर ये सब मुमकिन नही था मेरे सामने उसे उसके कब्र से निकलने का साहस नही था।
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