खाक में मिल गए जज्बात मेरे,
तेरे दिए गम बन गए अँधेरी रात मेरे।
गुनाह-ए-इश्क किया था,
सजा तो मिलना ही था
पढ़े - क्यों बेटी हुई तो मातम छाया
नज़ारा बेखुदी का
दिल पे छाना ही था।
दिल से निकली आह को
पलको से बहाना ही था
पढ़े - माँ बहुत रोई थी
मोहब्ब्त में मुझ से हुई धोखा-धरी को
अपने दिल में तो दबाना ही था।
दुनियाँ वालो को दिल पे परे जख्म को नही दिखाना था।
होकर उससे रूबरू एक दिन,
पढ़े - इजहार हो न पाया
उसके गालो पे कस के तमाचा लगाना था,
किए गए उसके झूठे वादे वो रस्मे वो कस्मे,
पढ़े - तू नारी है कमजोर नही
ये सभी उसे याद दिलाना था
पर ये सब मुमकिन नही था
मेरे सामने उसे उसके कब्र से निकलने का साहस नही था।

Shubham Poddar

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