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क्यों बेटी हुई तो मातम छाया, गर्भ में ही इसका खून बहया, दुनियाँ में लाने से पहले, इसे दुनियाँ से दूर कराया, गुलाम देश का वो एकलौता आज़ाद था आखिर दोस उसका है क्या? ईश्वर के दिए उपहार को हमने क्यों ठुकराया, क्यों दो घर की रौशनी को गर्भ में ही मरवाया, इजहार हो न पाया जग-जननी है ये,जग-कल्याणी ये, प्रेम के सागर तले स्नहे का गागर है ये खुले आसमान का उड़ता हुआ बादल है ये, तपती हुई सूरज तले, तू नारी है कमजोर नही छावं की चादर है ये, अरे इसे भी जीवन का वर दो, इसे भी अपनी जीवन जीने का मौका तो दो।
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