"हिम के छोटे-छोटे तुहीन गोल-गोल कण कितना मोहक लग रहा है| स्फटिक सा श्वेत शीतल सौम्य बिल्कुल मेरी सगुन जैसी"| - बर्फ से ढ़के वसुधा पर अंगराई लेते मेजर मोहित सूर्यवंशी, अपने जेब से बटुआ निकाल कर सगुन की फोटो को एक टक निहारने लगे|
भावों से सजी सुंदर अलंकृत मुखड़ा| गुलाबी पान के पत्ता समान होंठ| ललाट पर छोटी सी काली बिंदी और घुटने तक काले लंबे घने बालों में हुस्न की परी लग रही थी सगुन| मुखमंडल पर सौम्य शांति, जैसे कि भारत माता साक्षात फोटो में उतर आयी हो सगुन के रुप में|
"उफ्फ्फ .....! ऐसे न देखो डियर| प्यार हो जाएगा"| - सगुन की बड़ी-बड़ी बिलौरी आँखों में आँखें डाल मेजर साहब ओठों पर हल्की सी मासूम मुस्कान ला बुदबुदाने लगे|

सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 1   ---   सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 2   ---   सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 3   ---   सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 4   ---   सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 5
सर पर हल्की चपत लगाते हुए पुनः मेजर साहब बुदबुदाये - "पगला गये हो मेजर तुम ....! देश के जवानों को केवल अपने मुल्क से इश्क़ होनी चाहिए| किसी लड़की की इश्क़ के लिए वक्त कहाँ है जवानों के नसीब में| कभी सुने हो किसी सैनिक का प्रेम कथा| उसमें भी इस विपरित परिस्थिति में| जब देश के दुश्मनों ने इतना बड़ा आघांत पहुँचाया है पुलवामा में, फिर भी तुम्हें इश्क़ सूझ रही"|
"साहब! आपको कर्नल साहब के अोर से तुरंत खेमे में हाजिर होने का आदेश पारित हुआ है| तत्काल इस टावर पर में रुकता हूँ| आप प्लीज जा कर कर्नल साहब से मुलाकात करें"| - सूबेदार दानिश वजाहत के रौबदार आवाज और सैल्यूट में पटकते जूते के थाप ने मेजर मोहित सूर्यवंशी के ध्यान मुद्रा को तोड़ा|
सूबेदार दानिश वजाहत को अचनाक टेकरी पर पा मेजर साहब हड़बड़ाते हुए सगुन का फोटो बटुआ में डाल कर जल्दी से जेब में रख खड़े हो गये|
"क्या बात है? सूबेदार साहब| अचानक साहब का यह अॉर्डर क्यों"? - मेजर साहब ने पूछा|
- "कोई आइडिया नहीं साहब| मुझे बस इतना ही कहा गया कि तुम तत्काल टेकरी पर पहुँचों व मेजर साहब को खेमे में भेज दो"|
खिलखिला कर हँसते हुए मेजर मोहित सूर्यवंशी वहाँ से चलने को तैयार हुए| उनकी मोतियों जैसी चमकते दाँत और करीने से कटी पतले मूँछ से शरारत झलक रही थी| हैंडसम और स्मार्ट तो वे थे ही साथ ही उनके मासूम चेहरा में बड़े उम्र के जवानों को हमेशा अपना बेटा नज़र आता| उम्र भी तो उनकी अभी तेइस साल ही हुई थी|
अपने शर्ट को ठीक कर, कांधे पर बंदूक उठा, दोनों हाथों से कैप ठीक करते हुए मेजर साहब वहाँ से रवाना हो गये| दानिश वजाहत ने टेकरी सुरक्षा की जिम्मेदारी सँभाल लिया तब तक के लिए|
कर्नल एच.एल गिरी के खेमे में पहुँच, मेजर मोहित सूर्यवंशी जूते को थापते हुए सावधान का मुद्रा लेकर "जय हिंद" कह सैल्यूट किया|
सिलसिले मुलाकातों का मत छोड़िएगा !!!  - भाग 2

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