बून्द जो गिरा सागर के तट पर बनकर उभरा एक बुलबुला।
मन के उल्लास से उड़ता हुआ तैर निकला जग सारा।।
क्या किस्मत है एक बुलबुले की जो सागर के वछ पर छाए

ऐसा ही जीवन सफल होता है।
जो संकट में भी न घबराए।

और कहत कहानी आने जाने की
केवल आगे ही बढ़ता जाए।

जिसने भी देखा उसे मिटते हुए
मगर वह मुस्काए जान गंवाए।

अदभुत है शक्ति एक बून्द की
जिससे सागर भी बस में हो जाए
फिर समर्पित अपने आप को कर दे
और बून्द से सागर वह बन जाए।।

(प्रकाशित हुआ भाषा भारती संवाद पत्रिका में)

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