रूद्र  बीस-इक्कीस  साल का गोरा-चिट्ठा ज़िम बॉडी गबरु जवान था। ग्रैजुएशन खत्म कर पीजी  के लिए  दिल्ली  यूनिवर्सिटी  में अप्लाई कर चुका था। फिजिक्स  से ऑनर्स  करने के बाद मास्टर  भी  हो जाये यही  उसका इच्छा  था। वैसे भी  अच्छी  नौकरी  अब इतनी  अासानी से मिलती  कहाँ? तत्काल  में खाली  था  और मन भी  कहीं  लग नहीं  रहा था तो एक दोस्त  के कहने पे डिस्को में डीजे के पॉस्ट के लिये  अप्लाई कर दिया। मॉल  भी  पास ही था जहाँ  के डिस्को में अप्लिकेशन  डाला था। बस रोहनी ही तो जाना था उसके रुम से बीस मिनट का रास्ता  बाईक से !! और अगर बस से जाना चाहे तो भी  अाधा घंटा-पैंतिस मिनट मे पहुँच  जाये।
फिजिक्स का  स्टूडेंट होने के कारण तरंगों का नॉलेज होना लाजमी था, ऊपर से म्यूजिक  का नॉलेज भी उम्दा था। कब कैसा संगीत  बजाना है  बखूबी  जानता था। बचपन  से ही इतने गाने रेडियो  पे सुन चुका था कि तन-मन में संगीत की रागनी शमाया हुआ  था। इंटरव्यू मैनेजमेंट  काफी प्रभावित  हुआ  उस से और हाथो-हाथ ज्वानिंग लेटर पकड़ा  दिया ॥

मध्यम  वर्गीय  परिवार के लड़कों  को तो वैसे भी  कोई  भी  चीज  इतनी  अासानी से मिलती कहाँ? कुछ अरमान जिंदगी  के साथ ही चला  जाता, कुछ को पाने के लिए  पूरी  जिंदगी  संघर्ष  में गुजर  जाता। छोटी-छोटी  चीजों  का ख्वाहिश  भी  दब कर रह जाया करती है।

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रूद्र  को भी  डिस्को में, पब में, फाईव स्टार होटल  में जाने का दिल तो बहुत करता !!! पर अार्थिक समस्या इन जगहों  पर जाना अलॉव नहीं  करता। ख्वाहिश  तो एक गर्लफ्रेंड  का भी  था पर अर्थ  और  समय दोनों  ही उस से बहुत ही दूर  ही था।  जिसके बिना कोई  भी  रिश्ता बनने से पहले ही दम तोड़  दिया  करती है। लेकिन दिल को इस जॉब से सुकून  भी  था। भले डांस करने का मौका डीजे फ्लोर  पर कभी  नहीं  मिला था और न ही कोई  साथ ही देने वाली मिली थी। लेकिन अब वही  डीजे कर्म बन चुका था  वो सभी  लड़कियाँ  जो कभी-न-कभी  रिजेक्ट कर चुकी  थी या जिसको अपनी  लाईफ  में लाने के लिये खासा जद्दोजहद  कर चुका  था। एक-एक  कर सब उसके  उंगलियों  के इसारे पे नाच रही थी। अरमानों की कली जो खिलने से पहले ही मुरझाने लगी थी मुस्कुराते  हुए  खिलने को तैयार थी। कुछ लड़कियाँ  तो रूद्र  के चाॅकलेटी लुक पे फिदा भी  होने लगी थी।
पर रूद्र  की नज़रे तो किसी और पे ही अटक चुकी थी। वही  जो लगातार कई दिनों से अकेले ही उसके डिस्को में अाया करती थी।  पता नहीं  क्या  नाम होगा? कहाँ से अाती है? कौन है? कुछ भी  नहीं  जानता था रूद्र। पर जो जानता था वो था की पसंद करता है। किसी  अच्छे  घर से लगती  थी।  शायद हाई क्लास से होगी या फिर मिडिल  हाई क्लास  से?? पता नहीं  पर जो भी  थी दिल को लुभाती बहुत थी।  वर्षों से बर्फ में ढ़के हुए पहाड़ी  का छाती  पसिज़ने लगा था। रश्मि  की किरणों  की हल्की  सी तपिस ही तो अभी  पड़ी थी। और दिल का दरार रिसने लगा।

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दिवानगी का अालम कुछ  यूं हुआ  कि जनाब  डीजे के धुनों का ही काया पलटने पे तुल चुके। पुरानी बॉलीवुड  गाने को हॉलीवुड  धुन में, और नई बॉलीवुड  गानों  को रिजनल म्यूजिक  में बदलने में लगे रहते। कैसे भी  मोहतरमा को अधिक-से-अधिक रोके रखने के लिये किसी  भी  हद तक म्यूज़िक  को तरेड़ने-मरेड़ने में कोई  कसर नहीं  छोड़  रखी थी।  अाखिर उसके नज़रों  को सुकुन, दिल का चैन, ख्वाबों की शहज़ादी जो थिड़कती थी उन धुनों  पे॥ बलखाती हुई  कमर, लहराती हुई  जुल्फे, इठलाती हुई  बाजुएँ, खिलखिलाती हुई  मुस्कान  किसी  को भी एक ही दफ़ा में मदहोश  कर दे। फिर रूद्र तो कई  दिनों  से देख रहा था कैसे बच पाता इन ‍अदाओ से??? > अंग्रेजी बीट - भाग - 2

Rajan Singh

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