जो आप इक बार घर आ जाते
तो तार दिलों के फिर जुड़ जाते
वो उलझनें जो फैल गई है दरमयां
बस नज़रें मिलते ही सुलझ जातीं

पढ़े - खुश रहिए आप मुस्कराइए


जो सामने खड़े हो जाते आप
तो जरूरत नहीं होती शब्दों की
इस सन्नाटे को मिटाने के लिए
काफी थी आपकी मौजूदगी

ना कोई तर्क वितर्क
ना वाद विवाद
ना कोई शब्दों का शोर
ना वार प्रतिकार

पढ़े - दिल में उतर गयी है वो

मन की सिलवटें फिर सपाट हो जातीं
सुलझनें सारी अपने आप हो जातीं
खामोशी के दौरान ही सारी बात हो जाती
जो बस एक बार मुलाकात हो जाती

Reeta Poddar

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