ये कुर्सी के दीवाने
ये सत्ता के परवाने
जयंती के बहाने
आएं स्वार्थ साधने

पढ़े - माँ बहुत रोई थी

पक्ष और विपक्ष में
मची गजब की होड़
संत फकीर से रिश्तों का
हो रहा गठजोड़
पढ़े - ये कुर्सी के दीवाने

सुख,सुविधाएं, ऐश्वर्य
महल तजकर अपने
 गरीबो के साथ आए
एक दिन कुटिया में

पढ़े - इजहार हो न पाया

रहने बैठ कर पंगत में
लगे प्रेम से खाने
कुर्सी के इश्क में
स्वांग लगे रचाने

पढ़े - इजहार हो न पाया

माननीयों की लीला
सब जाने
कोई भी हो अवसर
लगते है भुनाने।


( प्रकाशित हुई नया भाषा भारती संवाद में )

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