भीगी पलकें . . .
मेरी भीगी पलकें
अक्सर,,तुम्हे ढूँढती हैं
कब आओगे,,
शबरी के राम जैसे तुम,,,
मेरे प्रियवर,,,
बोलो,,,,।
हर पल ,हर लम्हा
तेरी ही याद
टीस देती मन को
दिल में बहता रहता
तेरी यादों का झरना
इसीलिए ही अक्सर
रहती हैं मेरी
भीगी पलकें,,,।
कोमल मन के अहसास
रूह की मोहब्बत
धुँध बनकर
छाए रहते हो तुम
मेरे मन मानस के
आँगन में,,,।
अंतहीन इंतजार बनकर
इसीलिए,,अक्सर
रहती,,दिखती
मेरी भीगी पलकें,,।
कुछ कहती नहीं
कुछ पूछती भी नहीं
कुछ बताती भी नहीं
हर स्त्री के मन की
बात,,कह जाती
ये भीगी पलकें।
सुख में दुःख में
उदासी में ,,विरह में
मन की घुटन की
अंतहीन प्रतीक्षा की
कसकती ,,,पीड़ा की
अनकही दास्तान है
ये भीगी पलकें।
बिन कहे ,,बिन बोले ही
बहुत कुछ कह देती है
राज दिल के खोल देती हैं
बड़ी बड़ी अंखियों
के कपाट सी
मासूम,,कोमल सी
बेचैन सी
बहुत कुछ समेटें
सहेजे,,लिपटाए
पर्दे सी ,,झिलमिल
पलकों की चिलमन सी
ये ,,,मेरी
Wow 👍
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