तुम थोड़ी सी हिम्मत कर लो . . .

माना अभी दुख है, उदासी  है ,

परेशानी छाई है

तुम थोड़ी सी हिम्मत कर लो

ये वक्त भी कल गुज़र ही जाएगा

घिर आया अंधेरा भी लम्बा है

रात काली है दहशत सी जैसे  छाई है

लेकिन मानो तुम  हो लोह पुरुष

तुम वीर शिवाजी, राणा क़ी संतान हो

बस ये जानो आख़िर कब तक

ये कोरोना हमें डराएगा

तुम थोड़ी सी हिम्मत कर लो आज

ये वक्त भी कल गुज़र ही जाएगा

माना आज ना है महफ़िल दोस्तों क़ी

ना मिलना , ना मस्ती वो लब्ज़ो क़ी


माना याद आती है बहुत

गुलज़ार थी जिनसे दिल क़ी बसती

ना कोई तुझसे बेहतर ना कोई कमतर था

तूँ जब खुलके हँसता ओर रोता था

वो सब तुझमें ही है तेरे दोस्त

है कौन जुदा कर पाएगा

तुम थोड़ी सी हिम्मत कर लो आज


ये वक्त भी कल गुज़र ही जायेगा

माना पैसे क़ी है तंगी

कुछ चली गयी है नोकरीयाँ

कुछ बंद हो गए काम भी है

है मज़दूरों क़ी सिसकियाँ

अपने जज़्बे को रख ज़िंदा

है जन्म दिया जिसने तुमको

दो रोटी भी खिलाएगा

तुम थोड़ी सी हिम्मत कर लो आज

ये वक्त भी कर गुज़र ही जायेगा

है गुज़र गयी जैसे सदियाँ

वो माँ से जो थी नज़दीकियाँ

बाबा की प्यारी झिरकियाँ


वो भाई बहन क़ी ग़लतियाँ

माना जैसे कही कुछ टूट गया

है बचपन जैसे  छूट गया

पर तुम्हें क़सम उस आँगन क़ी

ना हिम्मत को मरने देना

वो मिलना जुलना होगा फिर 

ईश्वर वो दिन फिर  दीखाएगा


तुम थोड़ी सी हिम्मत कर लो आज

ये वक्त भी कल गुज़र ही जायेगा

वो शांत समंदर का सीना

वो हरी भरी वादियों में जीना

वो विचरना मस्त घूमेरु सा

छोटी नदी का कल कल बहना

वो पंछी , फूल से भरी नज़र


वो कच्ची सड़क व कठिन डगर

माना  अब  जैसे है कोई सपना

पर कब तक मुझे सताओग़े

तुम थोड़ी सी हिम्मत कर लो आज

ये वक्त भी कल गुज़र ही जायेगा


Rekha Jha

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