नारी तू नारायणी . . .

नारी तू नारायणी, नारी तू नारायणी
आज नहीं, कल से नहीं, आदिकाल से तारिणी
नारी तू नारायणी, नारी तू नारायणी
सृष्टि की रचियता तू
भवसागर से तारिणी
धरती का सा बल है तुझमें
समुद्र सी गम्भीरता तुझमें
चन्द्रमा सी शीतलता
आज नहीं कल से नहीं, आदिकाल से तारिणी
नारी तू नारायणी, नारी तू नारायणी
क्षमा, दया, ममता, प्रेम की
तू है पावन मूर्ति
महिषासुर का दामन तू करती
रण चंडी रूप की धारिणी
आज नहीं कल से नहीं, आदिकाल से तारिणी
नारी तू नारायणी, नारी तू नारायणी
मन के हारे हार है
मन के जीते जीत
मन ही मन का शत्रु है
मन ही मन का मीत
प्रथम गुरु तू शिष्य की
तू ही सुख दुख कारिंणी
नारी तू नारायणी
आज जरूरत है नारी को
चंडी रूप में आने की
आज नहीं वो निर्बल अब्ला
बनकर धधक रही अब ज्वाला
सोच समझ व ज्ञान बुद्धि
की तू ही है विचरणी
नारी तू नारायणी
नर के रूप में दानव घर घर
है वानियत है आज सड़क पर
लूटी जाती इसकी लाज
चलते फिरते बस और कार
स्वयं सुरक्षा करो अब अपनी
नहीं रहो किसी की मोहताज
आज नहीं कल से नहीं
नारी तू नारी में शक्ति
नारी तू नारायणी, नारी तू नारायणी
तू है सर्दी की धूप करारी
बसंत ऋतु सी तू मतवारी
दुर्गा बन तू जग को तारी
अब न बन बस एक बेचारी
अपनों से न अब खा गारी
बन जा फूलों की तू क्यारी
नारी तू नारायणी
क्यों नहीं हर नारी स्वयं को
ताकत व साहस से भरती
क्यों झेलती है अत्याचार को
और फिर आंसुओं से रोती
बंद करो अब रोना धोना
उठो हाथ मै ले तलवार
क्युकी नारी तू नारायणी
आज नहीं कल से नहीं
आदिकाल से तारिणी

Rekha Jha

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk