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अच्छा नही झूठी शान, तेज रफ्तार में आना, बेरोजगारी दूर करो, नही तो बेहतर नही सरकार में आना। फक्र होता है हमको भी, सरे-महफिल दस्तार में आना, मुमकिन नही मेरा कसीदे पढ़के, सरकार में आना।
लड़ना है तो लड़ो भूख और गरीबी से, नही बेहतर मुझको लगता,जुल्म के कारोबार में आना। शोहरत की ऊंची ईमारत, ज़मींदोज़ हो जाएगी मसीहा बनना है तुझको तो उजड़े हुए दयार में आना।
खूनी आंसू रोते है, वो सब बेचारे अब, पढ़े लिखे से कहते हो,चाय पकौड़ो के कारोबार में आना। मन की बातों से, भला क्या करोगे तुम उनका, बेहतर नही कुछ झूठे चैनल खुनी अखबार में आना।
तूने कितने झूठे पैगाम भेजे है उन सबको, उम्मीदों का दीप जला के, क्या तेरे दरबार में आना।
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