बेकसी में भी कभी लोग हंसते हैं क्या।

दो वक्त भी कभी संग मिलते हैं क्या,
टूटे दिल भी कभी फिर जुड़ते हैं क्या।

सोचता था भूल ही जाऊंगा तुझे मैं,
जख्म बेबसी के यूं ही रिसते हैं क्या।

जुदाई की घड़ी क्यों खत्म नहीं होती,
बिछड़े प्रेमी फिर से मिलते भी हैं क्या।

क्यों भूल गए तुम अदा मुस्कुराने की,
बेकसी में भी कभी लोग हंसते हैं क्या।

मैंने तो सुना था कि बे दर्द होते हैं लोग,
मौत पर बेवफा की  लोग रोते हैं क्या।

मैं ढूंढता  रहा दूर तक एक हम कदम,
तनहाई में भी लोग संग चलते हैं क्या।

मौत भी आती नहीं मुझे अब यारा,
यार से बिछड़ कर  लोग जीते हैं क्या।

Pradeep Kumar Poddar

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