बच्चे दौड़ते भागते लपकते
जल्दी होती चौपाल पहुंच जाने की
नौमुख वाली घुनसार वहां थी
तैयार चना बाजरा भूजाने को

सभी औरतें लाई भर भर
थाली में कई अनाज बीज
कोई घुनसार के इधर बैठता
कोई उधर बैठ झोंकता सीक

वाहि प्रज्वलित थी चूल्हे में
चटकते फूटते थे दानें
मिलकर बांटते पूछते थे सब
सुख दुख दर्द अपने बेगाने

भूंजा भी तैयार हो जाता
बातें हो जाती मन भर
फुर्सत से दिल साझा करने का
अवसर मिलता कहां दिन भर

गांव की ऋत बड़ी मनोहारी
सांझा चूल्हा संस्कृति हमारी
लुप्त हो गई दस्तूर सारी
आधुनिकता के आगे परंपरा हारी

Geeta Kumari

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