संघर्ष ओर विजय क़ी कहानी . . .

मिट्टी ने पूछा आज कलश से
तू भी मुझसे ही बना है ना

क्यूँ तू सर पर मैं पेरो में
क्यूँ तू अमूल्य मैं मूल्यहीन

कलश ने उसको समझाया
मै जब पेरो से गूँधा गया

तू मुझसे दूर था छिटक गया
ना मुझसे आकर मिला कभी

तू अपने ही में बस सिमट गया
मैं कड़ी धूप में तपकर फिर

अग्नी में जलकर निखर गया
मैंने  मानव क़े  जुल्म सहे

अब देखो उसके सिर पर चढ़ गया
मै अपनी हिम्मत ओर बल से

अपनी विजय को गाता हूँ
था कभी पड़ा जो धरती पर

चढ़ शीश मनु के आज इठलाता हूँ
मैं मिट्टी था बन कलश आज

देवों को भी हर्षाता हूँ
रख गंगाजल मेरे अंदर

मै सबकी प्यास बुझाता हूँ
मैं मिट्टी था , मैं मिट्टी हूँ ,

मिट्टी में ही मिल जाऊँगा
पर अपने कर्मकाल में मै

बन कलश आज समझाता हूँ
लो सीख आज मुझसे ये सब

ग़र मान तुम्हें भी पाना है
कर्म करो , तप कर के बढ़ो

फिर देखो क़ेसे शीश चढ़ो

Rekha Jha

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