शिक्षक समाज का सृजनकार . . .
सभी गुरुओं को समर्पित

शिक्षक  समाज का सृजनकार हैं,
जो है मुझमें ,उनका अपकार है।

  सच कहूँ  उड़ती  हूँ जग में,
  खोयी रहती मैं  सृजन में !

 मानती हूँ, गुजरा जमाना,
 मुझमें है आपका ही साया!

छल सके नहीं जग की माया,
कर धवल चित, सुंदर काया !

कण -कण में  है उनकी छाया!

शिक्षक  को जब सम्मान मिलेगा,
बच्चों  में भी ग्यान  फलेगा।

साहस, धैर्य , सत्कार, समंजन,
आँखों में हो शील का अंजन,

ऐसा वो उपदेश बनेगा
घर -घर का संदेश  बनेगा!

शिक्षक समाज का मूल तत्व
देता क्षण-क्षण जो जीव सत्व !

कर ग्यान   पिपासा  में आसक्त,
उर में  भर देता हैं अपनत्व !

जो देता  सद्गुणों का उपहार हैं
उनको सौ -सौ बार प्रणाम  है!

Hema Singh

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