तुम चाँद बन कर भी जलाते हो।

चाँदनी बन मुझमें समाते हो
तुम गीत बन कर सताते हो।

आवाज से रूह में समाते हो
तुम फूल बन मुझे महकाते हो।

सुरभि तन मन में भरते हो।
तुम रात बन मुझे जगाते हो।

देह के भँवर में समा जाते हो।
तुम नजरों से कत्ल कर जाते हो।

मुझकों दिवानी बना जाते हो
तुम अध्रोष्ठ जब छू लेते हो।

देह में जलतरंग  जगा देते हो।
तुम स्पर्श कर अंग अंग पुलकातेहो

मन को मदहोश कर जाते हो।
तुम मेरी देह कैनवास बनाते हो।

चूम चूम कर चित्र सजा देते हो
तुम जब अंग प्रत्यंग को छूते हो।

फुलझड़ियाँ देह में छुड़ा देतेहो
तुम जब  केशों को सँवारते हो।

स्पर्श सेमन को सुकूँ देते हो
तुम जब गहरी नजरों से देखते हो।

रोम रोम में सिहरन भरते हो।
तुम जब दिल की बात सुनाते हो।

मुझमें रचबस लहू में बहते हो
तुम जब जब करीब आते हो।

हसीन पलों की भेंट दे देते हो
तुम ही हर वक्त मुझमें मिलते हो

मेरे वजूद पर छा जाते हो।
तुम मेरे शब्द बन जाते हो।

कविता बन फिर निखरते हो।
तुम काव्य सृजना की प्रेरणा हो

कल्पना बन मुझे सजाते हो।
तुम मेरी सोच के दायरे बढ़ाते हो।

नव विधा बन लेखनी सजातेहो
तुम ही तुम हो अब मेरे वजूद में।

साँस साँस में बस कर रहते हो।
तुम मुझमें ज्वार भाटा जगाते हो।

खुद ही फिर चैन से सुलाते हो।
तुम इस तरह मुझ पे छाए रहते हो।

आगोश की तपिश में गर्माते हो।
तुम मेरे सिंदूर,बिंदिया बनते हो।

 मुझे सुहागन बना श्रृंगारते हो।

Neelam Vyas

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