जीवन कर्म . . .

भोर भई अब तो मनुजजागत,
काहे दिन चढ़े हैसमय सोवत,
कर्महीन न कछुजगत में पावत,
सोवत है जो वो सफलताखोवत।
स्नान ध्यान ओ अर्चन करमनुज।
नियम धर्म से  पूजन करमनुज।
दिनचर्या संतुलित तू करमनुज।
मनुज धर्म निभा न बन दनुज।
प्राची से उगती किरणें लालम लाल
नभ को कर गयी किरणें रंग लाल।
खग विहग वृन्द गुंजन धरा विशाल
जगती के सब कर्म निश्चितसु काल
भजन कीर्तन चिंतन मनन करो।
ध्यान योग आसन प्राणायाम करो
दान धर्म पुण्य नित तुम भी करो।
मनुज धर्म सार्थकता सिद्ध करो।
इक़ भलाई नित्य तुमजरूर करो।
असहाय मदद गरीबका भला करो
लोक कल्याण को लक्ष्य पूर्ण करो
मनुष्य धर्म निभाओ कल्याणकरो


Neelam Vyas

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