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नारी है संपूर्ण संसार . . .

 उठाती गृहस्थी का समूचा भार
नींव हिल जाती परिवार की

नारी को स्तंभ घर द्वार की
किरदार अनेकों निभाती दिनभर

कभी पत्नी कभी मां बहू बनकर
उत्तम भोजन प्रबंधन ताउम्र

युवावस्था या हो जाए वयोवृद्ध
कपड़े धोती सँवारती गृह सजाती

लकड़ियां बीन -बीन चूल्हा जलाती
परवरिश बच्चों की पल-पल करती

बीमार सदस्य की संबल बनती
मानो कई भुजाएँ है लपेटेओ

एक साथ अनेकोंनेक काम समेटे
कभी इधर कभी उधर है भागती

वामा तू तो कभी ना हारती
अद्वितीय है तू अतुल्य अवर्णनीय

युगो युगो से उपासनीय पूज्यनीय

Geeta Kumari

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