ज़ाम होंठों से ही नहीं . . .

आंखों से भी पिलाना चाहिए,
फिर ज़ाम-ए-आगोश में तुम्हें,
सब  कुछ  भूल जाना चाहिए।

यूं  नज़र  न  लग   जाये  तुम्हें  कभी,
इसलिए काला टीका लगाना चाहिए।

यों  तो   मेरे   ख्वाबों  में  रोज़  आते हो,
कभी तो तुम्हें हक़ीक़त में आना चाहिए।

कि  बेज़ार  सा   रहता   हूं   तुम्हारे   बिन,
अब किसी हक़ीम को मुझे दिखाना चाहिए।

कितने  सालों  बाद  मिल   रहे   हैं  हम  दोनों,
 नकाब हटा दो अब तुम्हें चेहरा दिखाना चाहिए।

Anurag Maurya

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