Pankh

है पंख नहीं मेरे, मैं आसमान में उड़ती हूँ!


है पंख नहीं मेरे
लेकिन मै आसमान में उड़ती हूँ

माना काली है रात बहुत
मै ख्याब सुनहरे बुनती हूँ
मै गंगा हूँ मै जमुना हूँ
मै जेसे कल कल बहती हूँ

हैं पाप धुले मुझमें कितने
पर श्र्द्हा हूँ, विश्वास हूँ मै
मै सबको पावन करती हूँ
मै जननी हूँ , मै शक्ति हूँ

मै ही दुर्गा, मै काली हूँ
हाँ पूजी जाती घर घर में
पर कहाँ म आदर पाती हूँ
है हाथ उठाता कोई मुझपर

कोई बेपर्दा करता है
पर बारिश की एक बूँद हूँ मैं
जो सीप में मोती रखती हूँ
मै विद्या हूँ मै हूँ पुस्तक

मै ही हूँ वीणा धारीनी
कब तक रोकोगे शिक्षा से
मै ही हूँ जग की तारीनी
मै हूँ गीता मै रामायण

मै खुद म एक पूरी किताब रखती हूँ
मै ना हिन्दू हूँ ना मुसलमान
ना सिख ना कोई ईसाई हूँ
मंदिर मस्जिद सब एक ही हैं

हर धर्म से नाता रखती हूँ
भारत माँ क़ी बेटी हूँ मै
बस यही पहचान हाँ रखती हूँ
फ़्हिर नहीं बँटी किसी भाषा से

मै सबको एक समझती हूँ
आधुनिक हूँ विचारो से
पर संस्कारो का पूरा हिज़ाब में रखती हूँ
हूँ जेसे मै फ़्हिर कोई आग

ज्वाला सी धधका करती हूँ
लूँ शमशीर जो हाथों में
फ़्हिर रजिया मै बन जाती हूँ
मै हूँ सतीत्व की परीभाषा

मै अनसुइया की मर्यादा
जो छलना चाहे कोई मुझको
त्रिदेवों को कर दूँ बालक सा
मै जब बन जाती हूँ काली

महादेव पे तब पग धरती हूँ
झकझुक सीधी खड़ी हूँ मै
मानव विकास की कड़ी हूँ मै
रेंगा करती थी धरती पर

अब आसमान से बड़ी हूँ मै
अब ठान लिया बस उड़ना है
अब कहाँ मै रुकने वाली हूँ
है पंख नहीं मेरे लेकिन

मै आसमान में उड़ती हूँ
माना काली है रात बहुत
मै खाब सुनहरे बुनती हूँ


Rekha Jha

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