दरिया -दरिया बाढ़ है ,पानी पानी गाँव |
आफत बरसे मेघ से ,ये कुदरत के दाँव ||

बिजली बादल आँधियाँ ,विपदा के संकेत |
सर ऊपर पानी हुआ ,अब तो मानव चेत ||

जलप्लावन को देख कर ,होता ये आभास |
दो कदम की दूरी पर ,छुप के खड़ा विनाश ||

छुप के खड़ा विनाश है ,देख बाढ़ का रूप |
पर्वत नदियाँ मार्ग सब ,बने मौत के कूप ||

कहर ठहाके मारता ,शहर हुऐ वीरान |
ले प्रबंधन आपदा ,खड़ा मौत सामान ||

कथनी करनी की खुली ,येन वक्त पे पोल |
थोथा चना बाजे घना ,पीट रहा है  ढोल ||

उड़ता है आकाश में ,नेता जी का यान |
धूल खा रहा देख लो ,स्मार्ट सिटी अभियान ||

मौत खेलती खेल है ,देख रहे चुपचाप |
किंकर्तव्य विमूढ़ से ,हुए हम और आप ||

समय पूर्व गर कर लेते ,हम जो उचित उपाय |
तो प्रकृति के सामने ,न होते निरुपाय ||

Pradeep Kumar Poddar

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