हमारी दोस्ती का तो आज यही अंजाम होना था
मुझे आज बदनाम और तुम्हें सरेआम होना था

मैंने सोचा ख़ुदा के रहम से मिली मुझे दोस्ती थी
आज पता चला तो यह कलयुग का  जमाना था

खुद से ज्यादा मैंने दोस्ती पर विश्वास किया था
जबकि अपने  ज़ख्मों का मरहम खुद होना था

मुझे क्या पता झुकी नज़रों से दोबारा  मिलना था
फिर मुझे बेईमान और तुम्हें वफादार भी होना था
आखिर एक दिन तुमको भी तो बेनकाब होना था
कब तक सच्ची दोस्ती शब्द को बदनाम होना था

Pradeep Chauhan

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