मेरे ख्वाबों में ये किसका चेहरा है,
यहां इश्क पर किसका पहरा है।


आंखें  हैं   या  नीला  समन्दर  हैं,
जो भी हैं लेकिन इनमें राज़ गहरा है।


कहां  जा  रहे  हो  आज  सबेरे-सबेरे,
बाहर मत जाओ आज बहुत कोहरा है।


अब नहीं देखुंगा तुम्हारी  आंखों में,
कहीं खो गया तो बहुत घना सहरा है।


बढते रहो निरंतर लक्ष्य की ओर,
तू भी तो चल यहां क्यूं ठहरा है।

Anurag Maurya

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