नारी होती साक्षात शक्ति का रूप।
शिव शक्ति से बनती प्रकृति सरूप
माँ, पत्नी,बहन ,बेटी में  है स्वरूप
हर रिश्ते को निभाती बन देवी रूप


गर्भ की पीड़ा सहती माँ जब बनती
भाई से लाड़ लड़ाती  बहन बनती।
ललाट सजाती पत्नी जो बनती।
घर सजाती बेटी रूप  जो बनती।


अफसोस,भोग्या रूप ही देखते ।
सजी सँवरी देह नर जो देखते।
कामुकता भरी नजर नर डालते।
हवस का निशाना नर बना डालते।


तार तार कर देते रिश्तों की मर्यादा
शराब से बढ़ती वासना भी ज्यादा।
मन मचले तो करे नर बुरा इरादा।
देह आकर्षण  ललचाये है ज्यादा।


रिश्ते  नाते कलंकित कर देते नर।
जबरदस्ती देह नोचते क्यों नर।
देह शोषण कर मुस्काते तृप्त नर।
नारी की चीख़ों पे हँसते गर्वित नर।


नारी की इच्छा का सम्मान नहीं ।
अधिकार जमाना है बस प्यार नहीँ
मना करें तो थप्पड़ मार देते कभी।
गाल लाल कर देते वहशी नर कभी


मुर झाया चेहरा,सूजी आँखे बेनूर।
उँगलियों के निशान गालों पे जरूर
जुल्म की दास्तां कहते लब जरूर।
मार पीट कर करते नर जब गरूर।


देखो फिर कोई अबला पीटी गयी।
थप्पड़ की मार  सेलाल लकीरबनी
औरत के न कहने की ये सजा बनी
वहशी पति के हाथों असहाय बनी।


कोई मायने नहीं  नारी के इंकार के
जबरदस्ती लूट लेना इज्जत मारके
इज्जत लूट हत्या भी कर दे डरके।
औरत जीती यू ही क्यों मर मर के।


घरेलू हिंसा भी तो अपराध है।
नारी सहती क्यों अपराध है।
हर रोज होते नारी पे अपराध है
मानवता शर्मसार करे अपराध है।


कान के पर्दे फट गए,सूज गया चेहरा।
हिंसात्मक व्यवहार सह रहे मुस्काता चेहरा।
दब दब घुटती जाती,नर को देती क्यों नहीं हरा।
जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने से कल होगा सुनहरा।


उफ़्फ़,कितनी निर्ममता से पीटा गया है।
मार चोट से ,अँगुलियों का निशान गहरा है।
ए नारी ,ऐसा दयनीय हाल क्यों ये तेरा है।
सुनता नहीं विधाता,हुआ क्या वो बहरा है??।।

Neelam Vyas

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