आज मोहन बहुत उदास था।कल से उसे कुछ खाने को ही नहीं मिला था।आज रात को भी शायद उसे भूखा ही सोना पड़े,मन में यही आशंका थी।उसके कमरे में आठ मजदूर रहते थे,जिनमें से पाँच तो शराब की तस्करी के काम में लग चुके थे।उनमें दो को पुलिस पकड़ कर ले जा चुकी थी,परसों दोपहर को ही।

मोहन को भी शराब के ठेके दार ने बुलाया था ताकि तस्करी का काम करे तो उसे व उसके परिवार को गाँव में भूखा न सोना पड़े मगर मोहन ईमानदारी और स्वाभिमानी था।गलत रास्ते पर चलकर रोटी  कमाना नहीं चाहता था।उसे भूखे रहना मंजूर था मगर बेईमानी का काम मंजूर नहीं था।

अब लॉक डाउन के कारण मजदूरी नहीं मिली तो जमा पूंजी से काम चला रहा था।मगर कल रात बूढ़ी कमला ताई की बीमारी के कारण मरने जैसी हालत हो गयी थी।मोहन ने दवाई और फल ,राशन का सामान देकर उस गरीब की मदद की थी।ताई के आशीर्वाद से मोहन की आत्मा तृप्त हो गयी थी।मगर,,,अब वह क्या करेगा,,भूख से बेहाल हुआ जा रहा था।

तभी बुधवा ने उसे बुलाया और खाने का पैकेट थमा दिया।मोहन की आत्मा नहीं मानी,,वह तो फुटपाथ के भिखारियों को दिया जाने वाला खाना था,,वह यह कैसे खा सकता हैं,,,, क्या इसीलिए गाँव से शहर आया था कि अपने बूते पर कमा कर परिवार पाल सके।बुधवा के समझाने पर उस वक्त तो उसने खाना खा लिया,,मगर उसकी आत्मा उसे कचोट ने लगी।रात भर करवटें बदलता सोचने लगा।उसे गाँव और माँ की बहुत याद आ रही थी।उसने कल  वापस गाँव जाने का निश्चय किया।

सुबह की किरण नईउमंग लेकर आई और मोहन पैदल ही अपने गाँव को रवाना हुआ।मन भारी था ,लॉक डाउन की वजह से कोई सवारी गाड़ी नहीं मिली।

मोहन के शहर आने के सारे सपने चूर हो गए थे।एक साल मजदूर बन कर जो कमाया था ,वह सब खर्च कर चुका था।

पलायन की भावना उसके मन को तोड़ चुकी थी।एक मजदूर का इस देश में क्या  भविष्य हैं?आज मजदूर दिवस के दिन ही एक मजदूर के सपने चकनाचूर हुए,,आह ,,महान  भारत की यही तस्वीर,,मेहनकश मजदूर,,इस विडंबना को झेलने को अभिशप्त हुआ,,।

लॉक डाउन के कारण उस जैसे हजारों मजदूरों की यही विपदा थी।जो पैदल अपने घरों की और रवाना हो चुके थे,,।गर्मी ,भूख और प्यास,,को झेलते हुए।सबके चेहरे पर यही प्रश्न चिन्ह था?क्या होगा उनका भविष्य,, कैसे वे सुरक्षित घर पहुंच सकेंगे।हैं कोई जवाब,,किसी के पास,मजदूर  दिवस  ही दूर खड़ा मानों सड़क पर पैदल चलते मजदूरों का मख़ौल उड़ा रहा था।उफ़्फ़,,मेरे मजदूर,,,।क्या कोई  जवाब हैं किसी के पास,,,शायद नहीं।मोहन जैसे हजारों लाखों मजदूरों का पलायन क्या प्रश चिन्ह खड़ा करता हैं,?।।

Neelam Vyas

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