दिव्या को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ सुभाष ने कितना बड़ा धोखा दिया था उसको । ये ज़िंदगी उसे बेकार लगने लगी थी हर कोई पराया नज़र नहीं आ रहा था । डिप्रेश होने लगी थी दिव्या उसके आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा था ।शरीर शिथिल पड़ गया था । इसलिए दिव्या ने खुद को मिटाने का फैसला कर लिया और जहर खा लिया था ।
हॉस्टल की वार्डन निभा ने बहुत प्यार से दिव्या का ख्याल रखा । जब निभा ने दिव्या के बालों में प्यार से हाथ फेरा तो दिव्या फफक फफक कर रो पड़ी ।
निभा ने उसे रोने दिया । फिर उससे कहा - बेटा मैं पैंतालीस साल की हो चुकी । इस ज़िंदगी के अनुभव तुमसे बता रही । शायद मेरे अनुभव को जानकर तुम्हें जीने का एक हौसला मिले ।
फिर निभा ने अपनी कहानी सुनानी शुरू कर दिया और दिव्या ध्यान से सुनने लगी -
दिव्या बेटा मैं भी जब तेरी उम्र की थी तो अपने ही कॉलेज के एक लड़के नितिन से प्यार हो गया ।
फिर पढाई पूरी होने के बाद नितिन को सरकारी जाब लग गयी । और मैं भी सरकारी टीचर बन गयी ।
हमदोनों का प्यार बहुत सच्चा था । एक दूसरे के बिना हमारा जीना मुश्किल था । हमलोगों ने अपनी फैमिली की मर्जी से शादी कर ली । हमारा जीवन सुखमय हो चला था । ऐसा लगता था कि जैसे सब कुछ सपना हो। मैं हवाओं में उड़ने लगी थी इस दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की खुद को समझने लगी थी ।
मेरा पति नितिन खूबसूरत तो था ही उसके साथ ही मुझसे इतना प्यार करता था कि हर कोई मुझ पर रस्क करता था । नितिन ऑफिस से आता तो उसका कहना था कि मैं उस वक्त उसकी नजरों के सामने रहूं । इसलिए नितिन के कहने पर मैंने अपनी जाब छोड़ दिया ।
इसी तरह देखते-देखते शादी के पाँच साल बीत गए ।
मैं मां बनना चाहती थी लेकिन पता नहीं क्यों मां बन नहीं पा रही थी । डाक्टर से भी दिखाया मेरे अंदर कोई कमी नहीं थी ,ना ही नितिन के अंदर फिर भी ऐसा क्यों हो रहा था समझ नहीं पा रही थी ?
अब धीरे-धीरे मेरी खुशियों के पल कम होने लगे ।
सासू मां भी मुझे शिकायत भरी नजरों से देखती थी ।
लेकिन कुछ बोलती नहीं थी। नितिन अपनी मां का इकलौता बेटा था । इसलिए सबको मेरे बच्चे का इन्तज़ार था । मैं चिंता से घुलने लगी थी ।
एक दिन मैंने नितिन से कहा था -"कि बच्चे को गोद लेते हैं" लेकिन नितिन की मां ने साफ इंकार कर दिया । फिर नितिन भी चुप हो गया ।
आठ साल बीतने चले थे लेकिन मैं मां नहीं बन सकी थी । अब तो नितिन भी हमसे कटा कटा रहने लगा था । जाने क्या नितिन की मां कहा करती थी उससे ।
नितिन को मैं एक बच्चे की तरह संभालती थी ।
हर चीज वक्त पर देती थी फिर भी वो हमसे कभी-कभी नाराज हो जाता मैं सोचती थी कि शायद बच्चे की टेंशन हो उसे ।
एक दिन नितिन की मां ने डाक्टर से दिखाने के बहाने नितिन को बाहर ले गयी ।
मुझे लगा कि हो सकता डाक्टर के पास गए हों ।
लेकिन तीन चार दिन बाद हमें एक लड़की की फोटो मिली थी अलमारी से तो मेरा दिल जोर से धड़क उठा ।
शेष अगले भाग में
दिव्या को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ सुभाष ने कितना बड़ा धोखा दिया था उसको । ये ज़िंदगी उसे बेकार लगने लगी थी हर कोई पराया नज़र नहीं आ रहा था । डिप्रेश होने लगी थी दिव्या उसके आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा था ।शरीर शिथिल पड़ गया था । इसलिए दिव्या ने खुद को मिटाने का फैसला कर लिया और जहर खा लिया था ।
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