चहुदिश फैली हरीतिमा,स्वर्णिम गेंहू की फसलें।
फलों से लदे फदे फूलों ओ फलों के बगीचे।


नद नाले  बहते ,ताल तलैया झूमते गाते।
मेरे गाँव का जीवन दिखाऊ आओ,कैसे जीते।


शुद्ध आबोहवा ,सरल जीवन शैली  बिताते।
घर घर गाय को पूजते ,,दूध ,दही की धार बहाते।


धरती पुत्र किसान कड़ी मेहनत खेतों में करते।
महिलाएँ घर के काम के साथ खेती भी तो है करती।


बच्चों के खेंलने को हरे भरे  मैदान बुलाते।
 हरे भरे चरागाह पशुओं को मन भावन खिलाते।


छाछ बिलौना ,घर घर होता,हृस्ट पुष्ट नर नारी होते।
मेरे गाँव के जीवन में सब दिखावे से दूर रहते।


ताजी ,प्रदूषण रहित हवा से सभी स्वस्थ ही रहते।
धर्म ,संस्कृति ओ परम्परा की थाती गाँव ही तो  होते।


व्रत ,नियम ,मंदिर ,शंख पूजन ,घर घर मे ही होते।
मेरे  गाँव के जीवन मे सँस्कार फलते फूलते ओ निखरते।


मेरे गाँव  में भारतीय  जीवन पवित्रता को पाते।
मोटा पहनना मोटा ही खाना गाँव वासी पसन्द करते।


घर का खाना, चूल्हें की रोटी घी गुड़ के संग सब खाते।
गुड़  धानी बनती जब खेतों में भरपूर फसल हैं पाते।


वर्षों
मेरे गाँव में परदेशी भी सावन पर घर आ जाते।


गाँव की चौपाल पर सभी मे मिलते ,समाचार पाते।
एक घर की बेटी को सब गाँव भर की बेटी मानते।


प्रेम  विश्वास और अपनेपन से मिलजुलकर रहते।
मेरे गाँव में सभी एक सूत्र में बंधे ,एकता निभाते।


शहरी  छल कपट ओ बदनीयत से गाँव  दूर ही रहते।
सीधे सच्चे लोग भले ही गंवार कहलाते  ,खुश ही रहते।


अप संस्कृति से दूर सांकृतिक धरोहर गाँव  कहलाते।
मेरे गाँव का जीवन तो सदा सौंधी मिट्टी से ही महकता।


बूढ़े बुजुर्गों का सम्मान होता,मूल्यों का रक्षण सदा होता।
अपराध कम होते नारी जीवन भी सदा सुरक्षित रहता।


कितना भी चला जाये देश इक्कीसवीं सदी के पथ पर।
मेरे गाँव का जीवन  अब भी जीवन मूल्यों का द्योतक ही होता।

Neelam Vyas

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