सुबह से चक्करघिन्नी की तरह काम में लगी नीरा जैसे ही मोबाइल ले कुछ पल सुस्ताने बैठी तो सास ने मुँह बिचका लिया।हुह ,,की ध्वनि ससुर के मुँह से निकली लो बैठी है मोबाइल लेकर,,उनकी बुदबुदाहट  को नीरा ने अनसुना कर दिया।नीरा कवयित्री थी ।

ग्रुप के दिये गए विषय पर कविता रच कर सेंड करने ही वाली थी कि पति महोदय की चाय की फरमाइश आयी।आई ,,,,कहकर वह कविता सेंड करने लगी।जैसे ही फ़ारिग हुई कि पति दनदनाते हुए सिर पर आ खड़े हुए,,तुम  कभी कुछ सुनती भी हो मेरा,,लाल लाल क्रोध भरी आँखे देख नीरा  सहम गयी।

चुप  चाप चाय नाश्ता बना सबको खिलाने लगी।सहमे चेहरे और उदास आँखों को पति ने देख कर भी अनदेखा कर दिया।नीरा ने कई बार बताया था अपने कविता लेखन के बारे में, कई बार तो  ऑन लाइन सर्टिफिकेट भी दिखाए मगर घर में किसी ने भी कभी उसकी काव्य प्रतिभा को नहीं सराहा।

पति तो शक के मारे कई बार उसका मोबाइल भी चेक करते रहते थे।नीरा ने जॉब और घर के काम  में कभी भी कोताही नहीं बरती।ना ही सास ससुर और घर कर्त्तव्य  निभाने में कभी कमी रखी थी।फिर भी उसका मोबाइल लेकर बैठना किसी को घर में पसन्द नहीं आता।

क्यों,,क्या गलत किया उसने??वह चरित्र  हीन नहीं है फिर भी क्यों उसके चरित्र को सिर्फ पर कवितापाठ करने के कारण शक से देखा जाता।पति और बच्चों को भी मोबाइल में व्यस्त देखती,,,तब वह तो कभी शक सुबह नहीं करती।
वाह री दुनिया,,वाह नारी की नियति,,,ऐसी सोच से वह कब तक संघर्ष करती  रहेगी,, कबतक???


Neelam Vyas

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