शिव अपूर्ण मुझ बिन,शक्ति हूँ ,भक्ति हूं मैं।
कान्हा की राधा,रुक्मण ,यशोदा माँ हूँ मैं।

हर नर की जननी ,भगिनी ,प्रेयसी ,वत्सा ,अग्रजा हूं मैं।
तुम बीज हो तो युगों से रत्न प्रसविनी हूँ मैं।

तुम दिन हो तो रात,धूप हो तो नरम छाँव हूँ मैं।
तुम बादल मैं घटा ,तुम चाँद तो चंद्रिका हूं धवल मैं।

तुम अग्नि तो ताप हूँ ,तुम जठराग्नि तो रस व आस्वाद हूँ मैं।
तुम पक्व अन्न पोषण हो तो पाचक रस का आधार हूँ मैं।

तुम कमाकर लाते तो कमाई का उपयोग ,हूँ मैं।
ओ नर कम न समझ ,तुझ सी सृष्टा, दृष्टा हूँ मैं।

हम दोनों हैं धरा का आधार,न कम न ज्यादा का व्यवहार,,
तो भेद करके मुझे कम क्यों आँकते हो तुम।

बेड़िया पाँवो में बांध उड़ने,खिलने से वंचित क्यों करते हो तुम।
सहज गति से ,सरलता से ,सुकूँ से जीने क्यों नहीं देते हो तुम।

महिलादिवस पर लो संकल्प कि नारी को भी न्याय ,समत्व  दोंगे तुम।
आद्या को संपूर्णता का,शक्ति ओ स्नेह का प्रतीक बनाओगे तुम।

रौंद कर अरमान  नारी के ,कैसा पौरुष दिखलाते तुम।
वर्चस्व स्वीकार कर कर दो प्रदान सार्थकता महिला दिवस को आज तुम।,,,।।।

स्वरचित

Neelam Vyas

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