फूलों की वादियों में आग का दरिया देख रहा हूं,
इस दौरे हुक्मरानी में मैं क्या-क्या देख रहा हूं।

इतने आलीशान मंदिर, मस्ज़िद, गिरजा देख रहा हूं,
अब के दौर में अंधभक्ति, झूठा सज्जदा देख रहा हूं।

इस दौर के बच्चें बहुत दुर निकल गए है,
सय्याद के पिंजरे में कैद परिंदा देख रहा हूं।

सरसब्ज बागों को उजाड़ने वालें ये सितम देख ले,
मरने वालों को भी लुटे ऐसा इंसान ज़िंदा देख रहा हूं।

सलामत नहीं है अब पालने में बेटियां हमारी,
दुनियां में हर मोड़ पे वहसी दरिन्दा देख रहा हूं।

ज़हरीली सियासत का एहतराम नहीं होगा मुझसे,
हलचल दरिया के पानी में अपना चेहरा देख रहा हूं।

कभी फुरसत मिले तो उजड़ी, बिखरी बस्ती में आना,
मसीहा कोई आएगा, मुद्दत से में रास्ता देख रहा हूं।

वतनपरस्ती से बेहतर कहां है कोई काम शाहरुख,
 लोमड़ी की शक्ल में भेड़ियों को नुमाइंदा देख रहा हूं।

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