कोई लौटा  दे मुझे मेरे बचपन के दिन।
अबोध ,निश्छल ,मासूम से वो दिन।
माँ की गोद ,पिता का कंधा सुहाते हमें निस दिन।
अभाव की पीड़ा से दूर सोने जैसे चमकीले दिन।
दादा दादी की कहानियां में दुपहरिया कट जाती थी।
नाना नानी के दुलार से छुट्टियां महक उठती थी।
दूध मलाई,बर्फ गोले,पतंग बाजी के अलबेले दिन।
सखियों संग मुहल्ले के घर घर की रसोई में सांझा खाने पीने के दिन।
निश्चित सी दिनचर्या,असीम मौज मस्ती ,धौल मुक्के के दिन।
गुड्डे गुड़ियों के ब्याह रचाने, रिश्ते नए बनाने के दिन।
होली कि धींगा मस्ती,अबीर गुलाल से रंगीले दिन।
दिवाली के दीपों की कतार सजा आतिशबाजी करने के दिन।
जो मांगा वो पाया,जो चाहा वो सब खाने के भरे भरे से दिन।
काश,,कोई  लौटा दे मेरे मस्त खिलंदड़ ,महँगे से दिन।
पढ़ाई ,लिखाई,कोचिंग की कड़ी   परीक्षा की चिंता से दूर,,वे दिन।
घर परिवार की देहरी  से सजे ,रिश्तों की गर्मास वाले दिन।
बस प्यार और दुलार ही था जीवन में ,ऐसा मेरा सलोने बचपन के दिन।

आज कहाँ वो  रिश्ते,घर द्वार,वो माँ का आँचल,,
सुकून और सादगी छोड़ आये पीछे हम प्रगति के नाम पर,,।
जीवन भर की यादों को सँजोने वाला वो सुनहला बचपन।
काश,,सिर्फ एक बार जी आउ,, मिल जाये कही वो बचपन के दिन।

Neelam Vyas

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