कागज का पन्ना हूँ बिखर सा जाता हूँ,
जब भी उदास होता हूँ कही दूर चला जाता हूँ।
जब परेसान रहता हूँ लोगों से
उनकी ही मतलबी बातों से,
तब मैं नहीं खेलता हूँ
उनलोगों के जज्बातों से।
जब दुनिया से हार जाता हूँ
दुनिया को सजाने में,
तब मैं खुद निखर जाता हूँ
खुद को बनाने में।।
कागज का पन्ना हूँ बिखर सा जाता हूँ,
जब उदास होता हूँ कही दूर चला जाता हूँ।
मैं हमेशा दूर रहना चाहता हूँ
उन मतलबी यारों से,
जिन्हें मैं याद आता हूँ
उन्ही के जरुरी कामों से।
जब मैं हार जाता हूँ
अपने ही अरमानों से,
तब मुझे पहचान मिलती है
अपने ही कारनामों से।।
कागज का पन्ना हूँ बिखर सा जाता हूँ,
जब उदास होता हूँ कही दूर चला जाता हूँ।
अब दुनिया मुझसे दूर होने लगती है,
मेरी इन्ही पैगमों से।
तब मैं खुले छत से पढता हूँ,
अपने किये गए गुनाहों को।
अब बंजर सा लगता है,
मेरी अपनी ही ज़मी।
फिर क्या जरूरी थी ,
दुनिया को मुझे सताने को।
कागज का पन्ना हूँ बिखर सा जाता हूँ,
जब उदास होता हूँ कही दूर चला जाता हूँ।
Shubham Sharma
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