तंग हूँ ,परेशां हूँ ,दीमक लगी दीवारों से ,हर रिश्ता सड़ांध भरा ,घुटता हुआ ,
कुंठित सा है ....!!

दो मुँहे साँपों जैसा ,
हर चेहरा है ,न जाने कौन कब ,किस मुँह से डस लेगा ,दिल में अँधेरा घनेरा है ...!!

तितलियों की तरह ,उड़ना चाहती हूँ मैं ,खुली हवाओं में ,साँस लेना चाहती हूँ मैं ,पर मेरी परवाज़ों पर ,बेमानी रिश्तों का पहरा है ...!!
हालांकि ,खूंटी पे टाँग दिऐ हैं मैंने ,अपने डर सारे ,मगर मेरे परों में अभी ,इक ज़ख्म गहरा है ...!!
उड़ना ही है मुझे ,
उड़ ही जाऊँगी एक दिन ,
मैंने भी नन्हीं चिड़िया की ,उड़ारी से बहुत कुछ सीखा है ...!!
लाख घटाऐं हों घनघोर,
लाख छाऐ हों अँधियारे ,भला सूरज को उगने से ,आसमां में किसने रोका है ....!!


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

इस पोस्ट पर साझा करें

| Designed by Techie Desk