Untitled-design


लड़का हूँ तो क्या?
मुझको भी मेरी माँ ने अपने खून से सींचा है।
लड़का हूँ तो क्या?
शर्मो-हाय की पाठ मेरे पिताजी ने मुझको पढ़ाया है।

सिर्फ लड़कियो का दिल नही है
टूटा करता कभी-कभी हमारा दिल भी  टूट जाता है।
दर्द तो उतना ही होता है मगर अहसास छिपाना पड़ जाता है।

लड़का हूँ तो क्या?
बेटा भी होने का फर्ज निभाना होता है।
मजबूरियां मुझको भी जकड़ कर रह जाती है।

लड़का हूँ तो क्या?
मुझको भी रोना आता है।
कभी बेटा तो कभी भाई,

मामा तो कभी-कभी पती-पिता और
ना जाने किन-किन किरदारों का
रोल अदा करना पड़ जाता है।

फर्क सिर्फ इतना होता है कि
वो 5किलो का बोझ गर्भ में धारन करती है
और मैं पिता उसे दिमाग़ में जन्म देता हूँ।

लड़का हूँ तो क्या?
मुझे भी दो कुल की इज्जत को संभालने पड़ जाता है।

लड़का हूँ तो क्या?
मेरे भी आँखों मे आशु आता है।

लड़का हूँ तो क्या?
मुझ में भी दर्दो का सैलाब लिपट कर रोता है।

Radha Mahi Singh

इस पोस्ट पर साझा करें

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

| Designed by Techie Desk