Read A Poetry - We are Multilingual Publishing Website, Currently Publishing in Sanskrit, Hindi, English, Gujarati, Bengali, Malayalam, Marathi, Tamil, Telugu, Urdu, Punjabi and Counting . . .
'पीतल नगरी में आपका स्वागत है।', दर्शाता बोर्ड यूं यादों के सागर में ले गया। कुछ अधूरे जवाब और बेशुमार सवाल दे गया। वो संकरी गलियों में खेलना,
एक दूसरे पर मिट्टी उड़ेलना। क्या नहीं याद आता तुम्हें। भूल गए हो क्या, 'कंपनी बाग़' की वो 'इवनिंग वाक'; घास में बैठकर, दोस्तों की नौक झोंक। अलौकिक साईं मंदिर के कढ़ी चावल आज भी तुम्हें बुलाते हैं।
साईं वाटिका के फूल भी धीमे से आवाज़ लगते हैं। याद नहीं क्या, चुबती गर्मी में जब 'वंडरलैंड' जाते थे, आते हुए फिर 'डियर पार्क' हो आते थे। परदेसी हो चले हो, कभी आओ तो,
जामा मज़्जिद भी हो आना, अकबर के किले को किसी से कम ना आंकना। वो दाल-जलेबी का स्वाद जुबान पर अब भी है ना, झूठ न कहना, दोस्तों की 'मुरादाबादी बिरयानी' की फरमाइश अब भी है ना।
माना की रास्ते यहाँ तंग हैं, रोज़ 'ट्रैफिक' से एक नई जंग है। क्यों चले जाते हो इन्हें छोड़ के, हर बार की तरह मुँह मोड़ के।
पर अब के मत जाना, कुछ सेह लेना, कुछ संवार जाना। देखो तो, आज भी वो रास्तें आँखे बिछाये बोलते हैं- 'पीतल नगरी में आपका स्वागत है।'
Awesome
जवाब देंहटाएं