नोट-: इस कहानी में किसी भी विशेष जाति के और धर्म के लोगों को निशाना नहीं बनाया गया है, अपितु जाति व्यवस्था छुआ-छूत को बताया गया है,कि कैसे एक बच्चो के साथ जाति भेदभाव होता है और कहीं कहीं पर बहुत ज्यादा जाति भेदभाव होता है अन्य लोगों के साथ।

और इस कहानी में भी यही स्थिति को दिखाया गया है, और इसका परिणाम दिखाया गया है कि इस जाति व्यवस्था ने कई परिवारों को उजाड़ दिया।
इस कहानी से अगर किसी की भावनाये आहत होती हैं तो इस पर मै क्षमा प्रार्थी हूं।

मैं आशा करता हूं कि आप पूरी कहानी को पढ़ोगे

एक दुःखी बच्चे की कहानी - 3
अपनी हद में रहो! तुम नीच हो इसलिए तुम अपने बराबर के लोगो के साथ रहो,
ज्यादा आसमान को छूने की कोशिश न करो, वरना भयंकर परिणाम होंगे।
उस बच्चे के पिता ने कहा पंडित जी छोटा बच्चा है नहीं जानता,मैं आपसे हाथ जोड़ कर माफी मांगता हूं,मैं इसे समझा दूंगा,अब इस बार से गलती नहीं होगी,
इतना कह वह पंडित जी के पैर पकड़ने लगा,तभी पंडित जी ने जोरदार धक्का दिया  जिससे वह गिर गया और माथे से खून निकलने लगा, फिर भी उस पिता ने बच्चे को बचाने का खूब प्रयास किया, लेकिन पंडित जी नहीं माने।
और ये कहकर गये कि बहुत बड़ी गलती की है मन्दिर में जाकर कर अगर तुम लोगों को सजा नहीं मिली और मन्दिर की शुद्धि नहीं की गई तो यहां  भगवान का श्राप लगेगा जिससे तबाही होगी, इसलिए तुम पंचायत की बैठक में  इस बच्चे को लेकर पेश हो।
उन सभी बच्चों के पिता से पंडित जी ने यही कहा कि तुमने समझाया नहीं , मंदिर में चला गया,ताबाही होगी, तुम नीच हो तुमहे कोई अधिकार नहीं है मन्दिर में जाने का।
बहुत सी बातें कही पंडित जी ने जो इंसानियत के विपरीत थीं, लेकिन फिर भी वो लोग चुप रहे और माफी मांगते रहे, लेकिन पंडित जी ने न सुनी।

गांव के पंचायत की बैठक शुरू हो चुकी थी,जिसमें सभी लोग उपस्थित थे,
सरपंच जी गजेन्द्र दोनों पक्षों को सुनने लगे,
पंडित जी ने कई दलील पेश किये, मतलब ना-ना प्रकार की बातें कही जिनसे  इंसानियत भी शर्मसार हो गई।
इल्जामित बच्चों के पिता बस सुनते रहे और आंसू बहाते रहे, सरपंच ने उन गरीब बांपो से कहा, तुम कुछ दलील पेश करना चाहोगे।
तो झट से पंडित जी ने मोर्चा संभाला और कहा सरपंच जी ग़लती करने वाले लोग दलील नहीं देते ,केवल सजा पाते हैं।
तो एक बार फिर से सरपंच ने पूछा कुछ अपने बचाव में दलील दे सकते हो शायद कुछ सज़ा कम हो जाये,
तो उन बच्चों के बापो में से एक ने कहा सरपंच जी जहां इंसान इंसान में भेद किया जाता हो, जहां झूठी दलीलों से इंशानियत की हत्या की जाये वहां हम क्या दलील दे सकते हैं।

अब सरपंच ने फैसला सुनाया ,
तीन लोगों और उनके परिवार को ये कहा कि तुम्हें गांव में सभी समुदायों से अलग किया जाता है और लोगों से कहा जाता है कि उनसे जो भी मतलब रखेगा और कुछ देगा तो उसे गांव से निकाल दिया जायेगा।
तुम्हारे जमीन को पंचायत अपने अंडर में लेगी।
तथा वैद्यराज के परिवार को गांव से निकाल दिया गया,
और वैद्यराज के परिवार की जमीन को पंडित जी को दे दिया गया।

अब सब अपने अपने घर चले गए,जिनको सज़ा मिली वो रोते रहे लेकिन उन पर किसी को रहम न आया।
वैद्यराज का परिवार गांव छोड़कर जा चुका था,
उन तीन परिवारों से अब कोई मतलब नहीं रखता था।
एक दुःखी बच्चे की कहानी - 5

Anurag Maurya

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