नोट-: इस कहानी में किसी भी विशेष जाति के और धर्म के लोगों को निशाना नहीं बनाया गया है, अपितु जाति व्यवस्था छुआ-छूत को बताया गया है,कि कैसे एक बच्चो के साथ जाति भेदभाव होता है और कहीं कहीं पर बहुत ज्यादा जाति भेदभाव होता है अन्य लोगों के साथ।

और इस कहानी में भी यही स्थिति को दिखाया गया है, और इसका परिणाम दिखाया गया है कि इस जाति व्यवस्था ने कई परिवारों को उजाड़ दिया।
इस कहानी से अगर किसी की भावनाये आहत होती हैं तो इस पर मै क्षमा प्रार्थी हूं।

मैं आशा करता हूं कि आप पूरी कहानी को पढ़ोगे

एक दुःखी बच्चे की कहानी - 2

वह जगह बच्चों को बहुत पसन्द आयी , क्योंकि वह पुराना पीपल का पेड़ था ,जिसकी कुछ शाखाये जमीन पर रखी थीं, जिससे बच्चे आसानी से पेड़ में चढ़ गये, और खेलने के लिए तैयार हो गये।
अब बच्चों ने फैसला किया कि पेड़ में चढ़कर एक दूसरे को छूने वाला खेल खेलते हैं,
कहने लगे "बड़ा मज़ा आएगा"।
अब बच्चे तो खेलने लगे बेहद प्यारा खेल,
जिसको हमने भी कभी अपने गांव में बचपन में खेला था।
तभी अचानक कहीं जाते हुए , पंडित जी दिखाई दिए,
उनकी नजर एकाएक बच्चों पर पडी और दांत पीसते हुए बोले "वहां से उतर आओ नहीं तो वहीं से नीचे फेंक दूंगा।"
क्योंकि पंडित जी बच्चों में भी जाति धर्म ,ऊंच नीच ,छोटा बड़ा, देख रहे थे।
बच्चे सभी डर गये, और कांपते हुए उतरने लगे,
फिर सभी बच्चे कुछ देर तक पेड़ को निहारने के बाद चल दिए,
लेकिन पंडित जी दूर तक बच्चों को क्रोधित होकर ताड़ते रहे, और पंडित जी भी निकल लिए ।
शाम हो रही थी और मौसम भी बदल रहा था,
फिर सभी बच्चे उदासमन से अपने अपने घर आ गये।
उन्हें तनिक भी आभास नहीं था कि पंडित जी उनके घर में बताएंगे, उन्होंने सोचा कि डांट तो लिए ही हैं ,
अब क्या बताएंगे?
लेकिन पंडित जी के मन में कुछ और ही चल रहा था, बड़े ही दुष्ट प्रवृत्ति के थे,
बच्चों से उनका बचपन छीनने का मन बना ही लिया था।
दो तीन दिन बीत गए, बच्चों को किसी भी प्रकार की अनहोनी का कोई आभास नहीं था।

फिर एक दिन दिव्य के पिता सरपंच जी से पंडित जी ने कुछ गढ़ा, कुछ बढ़ा चढ़ा कर बातें और लेस दीं, तो सरपंच जी ने दिव्य को बुलाया और कहा कि मैंने मना किया था ना खेलने नहीं जाना किसी बच्चे के साथ खेलना नहीं है,
तो ऐसी गलती क्यो की?
बड़ी बड़ी आंखों से देखने लगे ,लाल लाल आंखें हो गई जैसे सरपंच की आंखों में खून उतर आया हो,
तभी पंडित जी धूर्तता भरी मुस्कान से  बोले सरपंच जी इसे रहने दीजिए,आप तो उच्च जाति से आते हैं।
बस आपको जो भी सज़ा देनी है  उन निचले लोगो को देना , क्योंकि उनके जाने से ही मन्दिर अपवित्र हुआ है और अगर उन्हें सजा नहीं मिली तो इस गांव का विनास हो जायेगा।
इतना कह आग लगा कर पंडित जी चोटी पकड़ते हुए चलते बने।
सरपंच ने जोरदार तमाचा दिव्य के गाल पर मारा, जिससे वह जमीन पर गिर गया और उठकर रोते बिलखते हुए अन्दर चला गया।

सरपंच जी ने ऐलान किया कि गांव  आपातकालीन बैठक  बुलायी जाये,
अभी तक उन बेचारे बच्चों के घरवालों को तनिक आभास न था,कि कहीं से अचानक पंडित जी टपक पड़े, और उन्होंने बताया कि ये जो  तेरा बच्चा है न ये मन्दिर में घुस गया था, पीपल के वृक्ष में चढ़ गया था, तथा सरपंच जी के सुपुत्र के साथ घूम रहा था,
इसको अपनी हद में रहना नहीं सिखाया क्यों रे!
एक दुःखी बच्चे की कहानी - 4

Anurag Maurya

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