नोट-: इस कहानी में किसी भी विशेष जाति के और धर्म के लोगों को निशाना नहीं बनाया गया है, अपितु जाति व्यवस्था छुआ-छूत को बताया गया है,कि कैसे एक बच्चो के साथ जाति भेदभाव होता है और कहीं कहीं पर बहुत ज्यादा जाति भेदभाव होता है अन्य लोगों के साथ।

और इस कहानी में भी यही स्थिति को दिखाया गया है, और इसका परिणाम दिखाया गया है कि इस जाति व्यवस्था ने कई परिवारों को उजाड़ दिया।
इस कहानी से अगर किसी की भावनाये आहत होती हैं तो इस पर मै क्षमा प्रार्थी हूं।

मैं आशा करता हूं कि आप पूरी कहानी को पढ़ोगे

एक दुःखी बच्चे की कहानी - 1
पर आखिर वो छोटा बच्चा था,रोकने पर थोडे ही रुकता,
इस उम्र में बच्चे ज़िद करने में और जिस कार्य को मना करो उसे सबसे पहले करने के शौकीन होते हैं, शायद उन्हें जिज्ञासा ये करने देती है क्योकि छोटे बच्चे की ज्यादा जिज्ञासु प्रवृत्ति होती है।

बस क्या था?
निकल गया खेलने कुछ और बच्चे मिले और लुका छिपी वाले खेल से हो गयी शुरूआत।
एक बच्चा जिसका नाम सोनू था,वह गांव के ही वैद्यराज का पोता था,वो भी सरपंच के बेटे दिव्य की तरह चुपके से आया था, वो कुल पांच बच्चे थे जो खेल रहे थे,
और जो तीन बच्चे थे वो उसी गांव के एक मोची का बेटा था और दो मजदूर के बेटे थे,
सभी की उम्र तकरीबन- तकरीबन एक जैसी ही थी।

 दस बीस तीस वाली गिनती गिनी और चार निकाल गये और पांचवें का दाम हो गया
और शेष बच्चों को छिपना था , और पांचवें बच्चे को दाम देने जाना था,
तो उसे कहा गया कि तुम उस कुएं को छूकर वापस आओ और हमें ढूंढना,हम अब लुकते हैं या छिपते हैं।

तो वह कुएं को छूने गया, तो उसे छूते हुए गांव के ही पंडित जी ने देख लिया,
पंडित जी जानते थे कि यह फलाने मजदूर का बेटा है,
और जो बच्चे थे वो पास के मन्दिर में छिपे थे,
वो मन्दिर बेहद पुराना था जो तकरीबन दो सौ साल के पहले का था,
वहां के लोगों में एक अंधविश्वास था कि उस मन्दिर में कभी निचले क्रम के लोग नहीं जा सकते थे,क्योंकि वहां के लोग और पंडित जी कहते थे इस मन्दिर में निचले
समुदाय के लोगों के जाने से अनर्थ हो जाता है , तबाही होती है, लेकिन ये सब केवल भ्रांतियां ही थी कोई सत्यता नहीं थी ,
क्या किसी मनुष्य के जाने से ऐसा कभी होता है?


जिस बच्चे का दाम था उसनेे एक बच्चे को देख लिया और बोला सोनू 'आइस पाइस' और कुछ बच्चे जो मन्दिर में छिपे थे वो 'टीप' लगाने के फिराक में थे,तो वे सभी बारी बारी से निकलते गये, और सभी को उस लड़के ने बोल दिया।
जब सब बच्चे बाहर निकल रहे थे तो उन्हें पंडित जी ने मन्दिर से निकलते हुए देख लिया, पंडित जी चुप चाप दांतों को पीसते हुए आंखों में लाली लिए चल दिए।
बच्चों को आभास हो गया कि पंडित जी क्रोधित हो गए हैं, लेकिन वे बेचारे नादान बच्चे खेल रहे थे ,
उन्हें तो ये तक नहीं पता था कि जाति धर्म छुआ-छूत होता क्या है?

बच्चों को लगा कहीं घर में डांट और मार न मिले, कहीं पंडित जी घर में बता दिए तो,
इसलिए वो दूसरी जगह कोई दूसरा खेल खेलने पहुंच गये।
एक दुःखी बच्चे की कहानी - 3

Anurag Maurya

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