समझते थे जिसे अपना पराया उसको पाया है
समझना चाहते थे कुछ समझ कुछ और आया है।
ये दुनिया जैसी दिखती है मगर ऐसी नही है ये
धोखे खा के मेरे अनुभवों ने मुझको बताया है।
हमी से सीखते थे कल पकड़ कर हाँथ लिखना जो
उन्हीं ने आज गजलों को मेरी उम्दा बताया है।
दुनिया भर की दौलत से किनारा कर लिया मैंने
तुम्हारे प्यार को अपने आंचल में छुपाया है।
ये वानी जो मिली मुझको मेरी माँ का सलीका है
उसी ने कैद एहसासों को यूँ लिखना सिखाया है।
वानी अग्रवाल
उम्दा
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