रंग विदेशी ऐसा हमपर सर चढ़ कर जो बोल रहा है
हर कोई अब जैसे तैसे बस अंग्रेजी  बोल रहा है।

हिन्दी में अब मां कहने में जाने लज्जा क्यूँ आती है
मम्मी मम्मी कहकर हर इक बच्चा मां को बोल रहा है।
दोस्त कहाँ सच्चे मिलते है . . .
हिन्द के रहने वाले हैं हम हिन्दी  अपनी पहचान हैं
हिन्दी है भावों की भाषा हर कवि जिसको घोल रहा है।

धन्य हैं हम ये धरा मिली है मिले खजाने भिन्न भिन्न
नतमस्तक सम्पूर्ण विश्व में हरदम जिसका मोल रहा है।
समझते थे जिसे अपना . . .
दिवस एक पर्याप्त नही है अपनी हिन्दी भाषा को
हिन्दी तो सर्वत्र व्याप्त है हर जन जिसको बोल रहा है।

हिन्दी ने साहित्य गढ़ा है हिन्दी ने इतिहास रचा है
हिन्दी हैं तो शब्द गढ़े हैं प्रेम सरस मन डोल रहा है।
एक मां की पीड़ा . . .
वानी ने वानी पाई है हिन्दी बिन सब सूना होता
रिश्ते बँधे पगे हिन्दी में मानव ये क्यूँ भूल रहा है।


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