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सर का ताज, बेहतर तक़दीर कहते हैं, कुछ लोग इसे तो अपनी जागीर कहते हैं। किस जलते दिल को मेरे तुम क्या . . . जाफरानी बाग, जन्नत की तस्वीर कहते हैं, ये हमारा कबीला है जिसे कश्मीर कहते हैं।
सियासी रहनुमाओं ने, बनाया इसे सरहद, हम तो अब भी इसे रेत की लकीर कहते हैं। इबादत में असर पैदा करो . . . अमन ने जब भी डेरा डाला मुल्क में अपने, सियासी आग लगाए फूटी तकदीर कहते हैं।
कहीं खुशी के आंसू, कहीं ग़म का है रोना, इसे भी तक़दीर, उसे भी तकदीर कहते हैं। नहीं पेट भरता महज . . . दिलकश नजारे शिकारे, झील के किनारे हो, मेरे ख्याल, मेरे ख्वाबों की ताबीर कहते हैं।
उनकी दुआओं में आने लगी तासीर शाहरुख , वह शहंशाह है जिन्हें लोग फ़कीर कहते हैं।
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