कभी तक़दीर बन नहीं सकती।
पत्थरों के निगारखाने।।
पढ़े - इबादत में असर पैदा करो . . .
मनातें हैं मसीहा जो ख़ुद को।
वो हैं शैतान के घराने में।।

आसमां में भी छेद कर देंगे।
देर पत्थर के हैं उठाने में।।
पढ़े - नहीं पेट भरता महज . . .
देखा युसूफ को जो हसीनों को।
लग गई उंगलियां कटाने में।।

अपना घर बसाने वालों से।
कितनी मुश्किल है घर बसाने में।।
पढ़े - महिखाने सी भरी हुई है . . .
मेरे दुश्मन के साथ थे तुम भी।
मेरी ही गलतियां गिनाने में।।


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