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फिर से है रोई आज रोली टीका माथ बिंदी फिर से है भीगी आज हाथों की ये मेहंदी पढ़े - बेवक़्त कमरे में आना . . . बार - बार पूछ रही कुमकुम की साज है सिर पे सजाने वाला कहाँ सरताज है
फिर से गजरा महका या कंगन की चाँदी फिर से है भीगी आज हाथों की ये मेहंदी पढ़े - आशिकी हो तो ये . . . किसको सुनाऊँ पिया मैं ये गीत विरह की किससे करुँ शिकवा अपने जिरह की
फिर से काजल रोया या कि घूँघट में बाँदी फिर से है भीगी आज हाथों की ये मेहंदी पढ़े - गांँधी बाबा तेरी आड़ में . . . जीती हूँ कि मरती हूँ दिल ही में घुटती हूँ पिया से मिलन की आस लिए रहती हूँ
फिर से है रोई आज रोली टीका माथ बिंदी फिर से है भीगी आज हाथों की ये मेहँदी
Thanq so much team Read a poetry.
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